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राष्ट्रीय शिक्षा नीति: विकास के लिए शिक्षा का सार्थक रोड मैप

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--- डॉ. ज्योति किरण (पूर्व अध्यक्षा राज्य वित्त आयोग)               निर्णायक बहुमत अधिकाशत: जनाकाँक्षा की कुछ विशिष्ट अपेक्षाओं को भी दर्शाता है। भारत में लोग मुद्दों पर ‘मत’ देना सीख रहे हैं। मोदी सरकार से विकास के मुद्दें पर जुड़ने वाले ‘नवमतदाता’ व युवा वर्ग को सामाजिक क्षेत्र के जिस सबसे बड़े सुधार की लम्बी प्रतीक्षा थी, वह जनपटल पर ‘नेशनल एजुकेशन पॉलिसी’ के तौर पर चर्चा के लिए  उपलब्ध है।              गत  कुछ दिनो में चर्चा या विवाद का केंद्र इसके भाषायी प्रावधान भर रहे जिसने सारे अन्य महत्त्वपूर्ण प्रावधानों पर चर्चा होने ही नहीं दी। यह नीति देश की  आधी जनसंख्या से जुड़े मुद्दों व सरोकारों का हल निकालने का प्रयत्न कर रही है। देश की आधी जनसंख्या 26 वर्ष से कम है और 2020 तक 'मिडियन' आयु 29 वर्ष होगी। लगातार जिस 'डेमोग्राफिक डिवीडेंड' की बात की गई अगर उससे जुड़ी नीति समोचित व विकास परक नहीं हूई तो विकास की परिकल्पना ही अधूरी है। शायद यही कारण था कि इसके लिए हर स्तर पर 'कंसलटेटिव' प्रकिय...

Desperate denialists

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                                Dr.Jyoti Kiran (Ex chairperson of 5thState Finance Commission)                 I had promised myself never to take Amartya Sen seriously from the day I first heard him speak years ago at the Institute of economic growth on poverty and entitlement theory.  I was a young brash scholar then who found his theories both illogical and eccentric. And unfortunately, this opinion of mine has never changed a bit despite my age, experience or his Nobel. Though I always managed to maintain my intelligent silence over any reference in any of the conferences on his theories and observations whenever mentioned by others. But his recent article on Indian election result and it's most unintelligent interpretation   compelled me to respond even at the cost of compromising with my own standards. Thus this  spontaneous and al...

मोदी जी की विजय नये भारत के विचार की विजय,

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                                  मोदी सरकार 2

मोदी सरकार : विचार व नवाचार की सरकार

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अपेक्षाओं की एक सुनामी के साथ चार वर्ष पूर्व केन्द्र की मोदी सरकार ने ‘सुराज’ सरकार के रूप में शपथ ली थी। यह सरकार कई अर्थों में  पिछली किसी भी सरकार से भिन्न थी। चूँकि यह उत्कट जनाकांक्षा के आधार पर बनी हुई सरकार थी। इसलिए भी कि इस सरकार का नेतृत्व करने वाला व्यक्तित्व सुराज की सफलता के कीर्तिमान पहले ही गुजरात में स्थापित कर चुका था। यही कारण है कि अपेक्षाऐं और भी गहरी और विराट थीं। प्रासंगिक है कि कुछ पक्षों पर दृष्टिपात हो। पहला तो हर दृष्टि से इस सरकार को नवाचार की सरकार कहा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री जी ने स्वयं को प्रधानसेवक कहते हुए जो शुरूआत की, तो हर प्रयोग ही नवप्रवर्तन से भरा हुआ रहा। चाहे ‘स्वच्छता अभियान’ हो या ‘बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाआ’े अभियान, जिसने बाद में एक आन्दोलन का रूप ही ले लिया। ऐसे सभी कार्यक्रमों में जन-सहभागिता एक प्रमुख घटक था। गाँधी और विनोबा के बाद भारत में ऐसे प्रयोग क्वचित ही हुए। विचार-परिवार ने सदा ‘राज नही समाज बदलना’ है, इसकी बात की थी। मोदी सरकार ने इस अवधारणा को मूर्त रूप देने में कोई कसर नहीं रखी। एक ओर विचार की ‘सत्ता’ पर विश्वास रखते ह...

बजट: ‘नए भारत की आर्थिकी’

सर्वस्पर्शी बजट को उकेरने में वित्त मंत्री ने भारत के ग्रामीण और किसान वर्ग की अपेक्षाओं को जिस कुशलता से रचा है, वह वास्तव में आश्चर्यजनक है। अगर मैं कहूँ कि यह बजट धरतीपुत्र व ग्राम-सुराज को समर्पित है तो गलत नहीं होगा।      एक सिद्वांत के तौर पर समर्थन मूल्य को लागत के डेढ़ गुणा करके स्वीकार करना, एक बड़ा कदम है। यह आलोचना कि जब तक किसान के पास विपणन की सुविधा नहीं होगी समर्थन मूल्य का कोई मतलब नहीं है, इसका उपाय करते हुए 22 हजार ग्रामीण हाट की व्यवस्था की गई। कृषि व ग्रामीण क्षेत्र पर 14 लाख करोड़ का व्यय एक बेहद महत्वपूर्ण कदम है। नीति आयोग व राज्य साथ मिलकर कृषि विपणन में संस्थाागत सुधार कर पायेंगे, यह इस बजट की नीतिगत उपलब्धि है। सक्रेंद्रित फंड्स को कृषि से जोड़कर मत्स्य, पशुधन इत्यादि के लिए निवेश करना बड़े कदम हैं। इन सब उपायों से ग्रामीण सड़क, सिंचाई, बिजली और अन्य स्वास्थ्य सुविधा जोड़कर देखें तो नये भारत का उदय ग्रामीण भारत से होता ही दिख रहा है।      यह बहुत महत्वपूर्ण बात है कि राजकोषीय घाटे को 3.3 प्रतिशत पर रखते हुए निवेश व सामाजिक क्...

Antyodaya through Annapurna Rasoi

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On the completion of one year of Government, Prime Minister in his path-breaking speech announced that the government policies will be guided by the principle of 'Antyodaya'. The government, he said will dedicate itself to the poor, marginalised and those left behind and shall work towards their empowerment in the war against poverty. Poor centric policies took a front seat in BJP states agenda too, when in the 2016 executive the party declared that inspired from Deendayal Upadhyay concept of 'Antyodaya', it is determined to take welfare to the poorest of the poor. However, the term 'Antyodaya' was not new to Rajasthan. In 1977, the then BJP led government in the State introduced 'Antyodaya' as a rural development programme where target group approach was reengineered to evolve an innovative welfare scheme for the poorest of the poor households at the village level. This was an experiment in itself of the 'bottom-up' approach which was ...