मोदी सरकार : विचार व नवाचार की सरकार
अपेक्षाओं की एक सुनामी के साथ चार वर्ष पूर्व केन्द्र की मोदी सरकार ने ‘सुराज’ सरकार के रूप में शपथ ली थी। यह सरकार कई अर्थों में पिछली किसी भी सरकार से भिन्न थी। चूँकि यह उत्कट जनाकांक्षा के आधार पर बनी हुई सरकार थी। इसलिए भी कि इस सरकार का नेतृत्व करने वाला व्यक्तित्व सुराज की सफलता के कीर्तिमान पहले ही गुजरात में स्थापित कर चुका था। यही कारण है कि अपेक्षाऐं और भी गहरी और विराट थीं।
प्रासंगिक है कि कुछ पक्षों पर दृष्टिपात हो। पहला तो हर दृष्टि से इस सरकार को नवाचार की सरकार कहा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री जी ने स्वयं को प्रधानसेवक कहते हुए जो शुरूआत की, तो हर प्रयोग ही नवप्रवर्तन से भरा हुआ रहा। चाहे ‘स्वच्छता अभियान’ हो या ‘बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाआ’े अभियान, जिसने बाद में एक आन्दोलन का रूप ही ले लिया। ऐसे सभी कार्यक्रमों में जन-सहभागिता एक प्रमुख घटक था। गाँधी और विनोबा के बाद भारत में ऐसे प्रयोग क्वचित ही हुए।
विचार-परिवार ने सदा ‘राज नही समाज बदलना’ है, इसकी बात की थी। मोदी सरकार ने इस अवधारणा को मूर्त रूप देने में कोई कसर नहीं रखी। एक ओर विचार की ‘सत्ता’ पर विश्वास रखते हुए अंत्योदय और एकात्म मानववाद पर आधारित राजव्यवस्था का प्रशासन में समावेश किया और वहीं दूसरी ओर आधुनिकतम प्रयोगों के साथ गुड गवर्नेंस के भी लक्ष्य बनाए और हासिल किए।
आर्थिक समावेशन की बातचीत तो लम्बे समय से हो रही थी। ठीक इसी तरह क्ठज् और पारदर्शिता भी नए शब्द नहीं थे, लेकिन इस सरकार ने छीजत रोकते हुए करीब 83 हजार करोड़ रूपये की बचत की। इन शब्दों को नया अर्थ देते हुए जन-धन योजना की क्रान्तिकारी पहल इस सरकार ने की। भारत के इतिहास में इससे पहले आर्थिक समावेशन की ऐसी क्रान्ति कब संभव हुई थी, जिसमें 4 साल में 31 करोड़ खाते खोले गए जिनमें 70 हजार 400 करोड़ से अधिक की राशि जमा हुई।
यह सरकार आर्थिक क्षेत्र में निर्णायक फैसलों की सरकार रही है। इसके दो सबसे बड़े उदाहरण जीएसटी और विमुद्रीकरण रहे। समस्त संदेहों और आलोचनाओं से ऊपर उठकर सरकार ने दोनों सुधारों को दृढ़ता से लागू किया और लचीलापन दिखाते हुए जीएसटी में सुधार की प्रक्रिया भी जारी रखी ताकि अर्थव्यवस्था के नए कर ढ़ाचों में विवेकसंगतता को वरीयता मिले। एक ही वर्ष में 90 लाख से ज्यादा अतिरिक्त लोगों द्वारा आयकर विवरण भरा गया, यह भी एक रिकॉर्ड है। आयकर प्राप्तियों में इसका परिलक्षित होना यह बताता है कि सुधारों का परिणाम सुस्पष्ट है। विमुद्रीकरण और जीएसटी के बावजूद अर्थव्यवस्था में एक ही साल में 1.5 करोड़ अतिरिक्त रोजगार सृजित करना यह बताता है कि आज विकास रोजगार शून्य नहीं है। इस पर जब विकास की दर थोड़ी गिरी तो आलोचना की गई कि आर्थिक सुधारों के परिणामस्वरूप विकास की दर मध्यवर्ती तौर पर प्रभावित हो जाएगी, पर एक बार फिर अर्थव्यवस्था 7.2 से 7.5 प्रतिशत की विकास दर के आसपास चल रही है और विमुद्रीकरण व जीएसटी का प्रभाव समाप्त हो रहा है। ठीक इसी तरह सकल पूँजी निवेश में 12 प्रतिशत की वृद्धि और विकास के मैक्रो घटकों का स्वस्थ होना जिनमें विदेशी मुद्रा भंडार करीब 426 बिलियन डॉलर एवं गोल्ड रिजर्व करीब 21.48 बिलियन डॉलर होना बड़ी उपलब्धियाँ है।
लैंगिक समानता 70 के दशक से भारत में एक नारे के तौर पर उभरी। इसपर कुछ काम भी हुआ लेकिन लैंगिक असमानता और भ्रूण हत्या जैसे सामाजिक प्रश्नों को हल करने के लिए ‘बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ’ का लक्ष्य एक अभिनव प्रयोग था। इस प्रयोग के माध्यम से अब तक स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर 100.60, उच्च प्राथमिक में 90.30 एवं माध्यमिक स्तर पर 73.70 प्रतिशत नामांकन में वृद्धि हुई है जो सुखद बदलाव का संकेत है।
अभी कर्नाटक में प्रधानमंत्री जी ने एप के माध्यम से महिला कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि अब महिला केन्द्रित विकास की जगह ‘वूमेन लेड डवलपमेंट’, यानि महिलाओं के ‘नेतृत्व’ में विकास का समय है। ऐसा कहते हुए उन्होंने महिला रक्षामंत्री और महिला विदेशमंत्री का उदाहरण भी दिया। केवल लैंगिक समानता की बात नहीं, इस सरकार ने लैंगिक समानता पर सघन काम किया और उसे जमीन पर उतारने के लिए लोक और नीति दोनों परिलक्षित किए।
उज्ज्वला जैसी महत्वाकांक्षी योजना को जमीन पर उतारने का प्रयास पूर्णतः सफल रहा है। और यह योजना भी जन मानस के हृदय तक पहुँची जिससे अब तक भारत के 709 जिलों में 3 करोड़ 30 लाख से भी अधिक एलपीजी कनेक्शन दिये गये जिनमें से केवल राजस्थान में ही 27 लाख कनेक्शन दिये जा चुके हैं।
युवाओं को स्किल इंडिया जैसे आंदोलन से जोड़कर और उन्हें मुद्रा योजना जैसा स्वरोजगारोन्परक विकल्प मुहैया कराना एवं स्टार्टअप-स्टैण्डअप नीतियों से केवल लक्ष्य पूर्ति नहीं लेकिन युवाओं में आत्मनिर्भरता और उद्यमिताओं के प्रति अन्तर्धारा को प्रवाहित करना है। आज टेलिविजन चैनलों पर जब डिबेट की जाती है कि स्किल क्षेत्र में 10 में से मात्र 3 को नौकरी मिली, पर यह भी देखा जाना चाहिए कि आज से पहले कभी किसी सरकार ने क्यों इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान नहीं दिया ? भले ही महत्वाकांक्षी लगे लेकिन 2022 तक 40 करोड़ लोगों को कौशल विकास से जोड़ा जाता है तो यह भारत के लिए स्किल क्रान्ति होगी। मुद्रा योजना के अंतर्गत अब तक 12 करोड़ से अधिक व्यक्ति विभिन्न वर्गों में 5.46 लाख करोड़ राशि का लोन प्राप्त कर चुके हैं जो एक बड़ी उपलब्धि है।
इधर प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भाजपा कार्यकर्ताओं ने मिलकर ‘ग्राम स्वराज’ अभियान चलाया जो अपने आप में विशिष्ट प्रकार का प्रयोग था। इसके अंतर्गत 16 हजार 850 गाँवों में जन सामान्य के जीवन में बदलाव लाने वाली सात योजनाओं (उज्ज्वला योजना, सौभाग्य योजना, उजाला योजना, जन-धन योजना, जीवन ज्योति बीमा योजना, जीवन सुरक्षा बीमा योजना और बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं के लिए मिशन इन्द्रधनुष योजना) को शत-प्रतिशत पहुँचाने का कार्य सफलतापूर्वक किया गया।
विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में भारत का उभरना कोई संयोग मात्र नहीं है। इस सरकार ने जितने रणनीतिक कौशल से भारत को उभरती आर्थिक राजनैतिक शक्ति के तौर पर प्रतिबिम्बित किया है, वह अभूतपूर्व है। वैसे तो भारत की विदेश नीति सदैव ही हमारी राष्ट्रीय नीति की अनुगामी रही है लेकिन तब भी इस बार सांस्कृतिक और उभरती सॉफ्ट पावर के तौर पर भारत ने जो अपनी जो पहचान बनाई है, वह इस काल में एक लम्बे समय की भूमिका बनाने के लिए पर्याप्त है। ‘एक्त ईस्ट’ नीति ने भारतीय विदेश नीति में एक अभिनव अध्याय जोड़ा और बाद में इसे आर्थिक संबंधों से परिपुष्ट करने का लगातार प्रयास हुआ। मालदीव, नेपाल, श्रीलंका और अभी हाल ही में चीन और रूस की ओर की गई सकारात्मक पहल से भारत की पैठ सर्तकता और प्रतिबद्धता से बढ़ी है। अभी से ही सकारात्मक परिणाम बांग्लादेश और पश्चिम एशिया में दिखने लगे हैं। भूमि सीमांकन समझौता और समुद्री सीमा चिन्हित करने से बांग्लादेश के साथ संबंधों में काफी सुधार आया है जिससे पूर्वोत्तर की स्थिति सुधरेगी। विरोधी शक्तियों से संतुलन और साथ ही सर्वस्पर्शिता कूटनीति की बड़ी कामयाबी रही है। चीन से सतर्क मैत्री का पुनर्संयोजन कूटनीति की बड़ी सफलता के तौर पर देखे जाने चाहिए।
इस सरकार का रिपोर्ट कार्ड केवल लक्ष्यों की पूर्ति के आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए। भारतीय जनमानस का एक राष्ट्र के तौर पर विश्वास का पुनर्सिंचन करना मेरे विचार से इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है। सरकार की हर नीति के पीछे सामाजिक संरचना परिवर्तन की पहल है। उदाहरणार्थ 11 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्डों का वितरण केवल किसानों की दृष्टि से नहीं अपितु पर्यावरण और आर्थिकी के क्षेत्र में भी क्रान्तिकारी कदम का सूत्रपात है। ठीक इसी तरह सर्वस्पर्शी बीमा योजनाऐं जैसे प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना या आयुष सामाजिक समानता और सुरक्षा की दृष्टि से लिए गए आर्थिक नवाचार, यानि केवल आर्थिकी के लक्ष्य नहीं, हर आर्थिक और सामाजिक लक्ष्य परिलक्षित है। नीतियों का उद्देश्य केवल राजनैतिक नहीं लेकिन प्रगल्भ राजनैतिक सोच और नीतिगत संधान से सामाजिक न्याय, समरसता और एकात्मता के लक्ष्यों को यह सरकार पूरा करती हुई प्रतीत होती है। यही इस सरकार का मूल्यांकन करने का पैमाना होना चाहिए।
’उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं।
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