गुजरात विकास: आकड़ों के आईने में
गुजरात विकास मॉडल
विकास चर्चा में प्रमुखता से आता रहा है| पिछले पंद्रह
वर्षों में विकास के विषय में, राज्यों की केन्द्रीयता के
विषय में जब भी बात हुई है गुजरात का उल्लेख जरूर आया है| इस
चुनावी क्षण में भले ही विकास को लेकर विपक्षी दलों के अपरिमित कटाक्ष हुए हों पर
तार्किक रूप से आंकड़ों और सांख्यिकीय ‘ट्रेंड्स’ पर स्पष्ट ‘नैरेटिव’ न तो ढ़ेरों
टीवी चर्चाओं में उभर कर आया, न ही प्रिन्ट मीडिया में
शोधपरक लेख ही उभरे कि आखिर गुजरात आंकड़ों के आईने में विकास की कौन सी तस्वीर
प्रस्तुत करता है? अक्सर आकड़ों के प्रस्तुतिकरण में
विचारधाराप्रेरित चयनित तर्कों का इस प्रकार घालमेल कर दिया जाता है कि आकड़ों का
मनमाना अर्थ निकाला जा सकता है| इस तकनीक का इस्तेमाल करके
देश के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने गुजरात की प्रगति पर प्रश्नचिन्ह लगाये है| हमने इस विषय पर विकास का एक सांख्यिकी स्क्रीन-शॉट
तैयार किया जिसमें विकास के आकड़ों को विश्लेषित करने हेतु तथा इसकी संगतता जाचने
के लिए विकास की संचयी दर को भी आंका है।
देश जरूर जानना चाहता है कि अर्थशास्त्रीय विश्लेषण में विकास का मॉडल जिसे
साधारणतः ‘ट्रिकलडॉउन’ के रूप में प्रस्तुत किया गया उसका दृष्टिकोण और निरन्तरता क्या है?
सबसे पहले सकल घरेलू आय
को लेते हैं। 22 साल के अंतराल में राज्य सकल घरेलु उत्पाद
की राशि 13.54 प्रतिशत (चक्रवृद्धि)
वार्षिक वृद्धि दर के साथ 10,33,791 करोड़ रुपये पहुच गई है
जोकि पूर्व में 71,886 करोड़ रुपये हुआ करती थी| साथ ही गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की दर में 2004-05 के मुकाबले 2011-12 में 47.37 प्रतिशत की कमी हो
गयी है जोकि एक अभूतपूर्व बदलाव समझा जाना चाहिए। 2017-18 में 1995-96 की तुलना में कुल
बज़ट में 13.34 प्रतिशत वृद्धि दर दर्ज
की गई है जोकि पूर्व के 10,873 करोड़ से बढ़कर 1,71,071 करोड़ हो गई है| इसी क्रम में विकास व्यय और राजस्व
प्राप्ति के क्षेत्र में क्रमशः12.56
एवं 12.43 प्रतिशत वृद्धि दर दर्ज की
गई है| इस दौरान 2017-18 में पूंजीगत व्यय जो भविष्य के निवेश व रोजगार का आधार होता है की राशि
भी 15.13 प्रतिशत वृद्धि दर के साथ 2044 करोड़ के मुकाबले 45,376 करोड़ रुपये पहुँच गई है| 2014-15 में 1995-96 की तुलना में औद्योगिक उत्पादन में 15.31 प्रतिशत वृद्धि दर दर्ज की गई है जो अन्य
राज्यों के मुकाबले बहुत अधिक है। राज्य के बैंक क्रेडिट की राशि 17.29 प्रतिशत वृद्धि दर से 1995-96 के 13,783 करोड़ के मुकाबले 2017-18 में 3,92,377 करोड़ रुपये
हो गई है| वहीँ इस समयावधि में बैंक डिपाजिट की राशि में 15.81 प्रतिशत
वृद्धि दर दर्ज की गई है जो राज्य में हुए विकास का स्पष्ट संकेतक है,
साथ ही व्यवस्था के औपचारिकरण को भी दर्शाता है।
सामाजिक सेवाओं के आधार
पर हमने पैनल चर्चाओं में बहुत से आक्षेप होते देखे हैं पर स्वास्थ्य एवं परिवार
कल्याण पर किये गए व्यय में 22 साल की समयावधि में 14.19 प्रतिशत (संचयी) वार्षिक वृद्धि दर से 2017-18 में 8,714 करोड़ रुपये खर्च
किये गए जोकि 1995-96 में 470 करोड़ रुपये हुआ करते थे| वहीँ शिक्षा, खेल, कला एवं संस्कृति पर किये जाने वाले व्यय की
राशि को 11.79 प्रतिशत वृद्धि हुई। यह भी राष्ट्रीय औसत से बहुत अधिक
है।
कृषि क्षेत्र में किये
गए व्यय की राशि 13.13
प्रतिशत (चक्रवृद्धि) वार्षिक वृद्धि दर
के साथ बढ़कर 7,427 करोड़ हो गई है जोकि पूर्व में 492 करोड़ रुपये हुआ करती थी| सिंचाई में तो गजब का
परिवर्तन दिखता है। चेक बांधों की कुल संख्या जोकि 1990-91 में 3492 थी| 2015-16/2016-17 तक के समय अन्तराल में 17.45
प्रतिशत वृद्धि दर से इसकी संख्या में 1,65,708 हो गई है| विद्युत् के क्षेत्र में हुए विकास को पैमाने पर मापने पर स्पष्ट होता है
कि 1995-96 से 2015-16/2016-17 के मध्य विद्युत् उत्पादन में 5.04 प्रतिशत वृद्धि दर, विद्युत् क्षमता में 5.63
प्रतिशत वृद्धि दर, प्रति व्यक्ति उर्जा खपत में 4.95 प्रतिशत वृद्धि दर रही है|
फिर एकबार नागरिक
सेवाओं पर आते हैं। जलापूर्ति, स्वच्छता, आवासीय एवं शहरी विकास पर जहाँ एक ओर 1995-96 में 375 करोड़ व्यय किये जाते थे वहीँ 2017-18 में अब 19.03 प्रतिशत (चक्रवृद्धि) वार्षिक वृद्धि दर के बाद इनपर 17,306 करोड़ रुपये व्यय किये जाते हैं| इसके अतिरिक्त
स्वच्छ भारत अभियान के बाद से राज्य की शौचालय रहित घरों की दर 47.3 प्रतिशत से 1.3 प्रतिशत हो गई है तथा इस दर में 97.25 प्रतिशत कमी की दर भी दर्ज की गई है|
माननीय प्रधानमंत्री ने
‘डेमाग्राफिक डिविडेंड’ पर लगातार बात की है, तो शिक्षा से
बड़ा मानवीय पूँजी निवेश क्या हो सकता है? और इस निवेश के
परिणाम भी साफ दिखाई दिये हैं। शिक्षा के क्षेत्र में 1995-96 के बाद से कुल अभियन्त्रिकी कॉलेज की संख्या में 12.52 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर की वृद्धि हुई है था अभियन्त्रिकी कॉलेजों में
सीटों की संख्या में 18.26 प्रतिशत
वार्षिक वृद्धि दर दर्ज हुई है| इसके अलावा अभियन्त्रिकी
कॉलेजों में डिप्लोमा में सीटों की संख्या में 12.28 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई है| बच्चों
की शिक्षा के क्षेत्र में 1995-96 के
मुकाबले 2015-16/2016-17 में कक्षा 1 से 5 के ड्राप आउट रेट में 95.83
प्रतिशत की कमी आई है| तथा कक्षा 1 से 8 के बीच के ड्राप आउट रेट में भी 88.17 प्रतिशत की कमी आई है| इसके प्रभाव से राज्य की
साक्षरता दर जहाँ 2001 में 69.10 प्रतिशत थी वही 2011 में ये बढ़कर 78 प्रतिशत हो गई है| इसके साथ ही अनुसूचित जनजाति की
साक्षरता दर, इस समयावधि में 2.73 प्रतिशत (संचयी) वार्षिक वृद्धि दर के साथ 62.50 प्रतिशत मापी गई है|
ये आकड़े राज्य के
रोजगार के अवसर में आये आमूलचूल परिवर्तन को भी दर्शाते हैं| पुरुषों के प्रति 1000 व्यक्ति बेरोजगारी दर में
जहाँ गावों में 76.19 प्रतिशत की कमी
आई है वहीँ शहरों में इसमें 72.22
प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी है| तो फिर जॉबलेस ग्रोथ का
आक्षेप क्यों?
गुजरात में केवल विकास
नहीं हुआ बल्कि निरंतरता का विकास हुआ है| केवल प्रगति
नहीं हुई बल्कि संतुलित प्रगति हुई है| किसी एक क्षेत्र का
विकास नहीं अपितु सर्वांगीर्ण विकास हुआ है| और ये आकड़े इसका
प्रमाण हैं| इतने आकड़े भी अगर ‘स्केपटिम्स’ के संदेह को
समाप्त नहीं कर सकते तो फिर वहम की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी, आर्थिक विश्लेषक क्या चीज हैं? गीता के एक श्लोक में
एक अद्भुत सन्देश है. ‘संशय आत्मा विनश्यतिः’
इसका आधुनिक अनुवाद इस प्रकार होना चाहिए कि संशय केवल आत्मबल ही नहीं
विकास की ‘समझ’ और ‘स्वीकार्यता’ को भी बाधित कर देता है|
गुजरात के ‘इनेबलिंग ग्रोथ मॉडल’ पर भावुक
वाम-प्रभावित तर्कों की नहीं, सुस्पष्ट विश्लेषण की आवश्यकता
है।
*लेखिका राजस्थान राज्य
वित्त आयोग की अध्यक्षा (राज्यमंत्री) हैं।
विचार उनके निजी हैं।
x
Comments
Post a Comment